बूँद से सागर तक



बेतकल्लुफ़ था कभी, वाबसता हुआ जाता है,
वो दिल-आवेज़, ख़ुद की सज़ा हुआ जाता है।

जागीर पे दुनिया का, ज़मीर पे है क़ब्ज़ा तेरा,
इस कदर प्यार में कोई पसपा हुआ जाता है।

इश्क़ में जीते हुए, इश्क़ में ही फ़ना होने तक,
होश होता है किसे, वो किसका हुआ जाता है।

उम्र भर ढूँढता फिरता था वो इक अपने जैसा,
देख कर तुझको वो भी तुझसा हुआ जाता है।

तुझसे मिलकर ज़िंदगी तो बदल गई, लेकिन,
एहसास ये भी है, कोई हादसा हुआ जाता है।

जा के मिलना है सागर में ही आख़िर सबको,
बूँद से बूँद का संगम है, दरिया हुआ जाता है।
Surinder Singh
बेतकल्लुफ़ - open, frank
वाबसता - submissive, dependent
दिल-आवेज़ - pleasing, captivating
पसपा - fall back, retreat

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